यूँ तो देखा जाए तो पीरियड्स महिलाओं के लिए प्रकृति का विशेष उपहार है, यदि यह नियमित रूप से होता रहें तो नारी के लिए वरदान और यदि यह अनियमित हो जाता है तो नारी के जीवन के लिए अनेकों समस्याएं खड़ी कर देता है। देखा जाये तो आज कल की बदलती जीवन शैली में महिलाओं में अनियमित पीरियड्स होना बहुत ही आम बात हो गयी है । कई बार यह समस्या बहुत ही सामान्य होती है और थोड़ी सी सावधानी व उपचार से फिर से ठीक हो जाती है, परन्तु कई बार यह बेहद गंभीर समस्या का रूप ले लेती है। ऐसे में इरेग्युलर पीरियड्स की समस्या को नजरअंदाज करना बिलकुल भी सही नहीं माना जाता है । ऐसे में हर महिला को पीरियड्स से जुडी अनेकों पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त करना बहुत ही आवशयक माना जाता है । यह आर्टिकिल आपको अनियमित पीरियड्स से जुड़े अनेकों पहलुओं को समझने में मदद प्रदान करेगा ।
मुंहासे से छुटकारा पाने के लिए अपानएं घरेलू टिप्स
आमतौर पर देखा जाए तो महिलाओं में पीरियड्स 14 से की उम्र से शुरू होकर 55 साल की उम्र के तक होता है।यह मासिक चक्र महीने में एक बार होता है और कम से कम तीन से छः दिन तक रहता है। देखा गया है किसी भी स्वस्थ महिला के पीरियड्स की अवधि 21 से 35 दिन के बीच होती है और यदि किसी महिला को इससे अधिक समय लगता है तो ऐसे में वह महिला अनियमित पीरियड्स की समस्या से ग्रषित मानी जाती है। अनियमित पीरियड्स की समस्या को चिकित्सक ओलिगोमेनोरिया के नाम से परिभाषित करते हैं।
ऑलिगोमेनोरिया क्या है:
ओलिगोमेनोरिया एक ऐसी अवस्था मानी जाती है जिसमें महिलाओं के मासिक धर्म की अवधि असामान्य होती है। महिला के एक मासिक धर्म चक्र की सामान्य अवधि 28 दिन की होती है, परन्तु ऑलिगोमेनोरिया की स्थिति तब पैदा होती है, जब पीरियड्स का समय 35 दिनों से अधिक या अनियमित होता है, अतः हम कह सकते हैं की ऑलिगोमेनोरिया से ग्रषित महिलाओं में पीरियड्स एक वर्ष में केवल 8 या 9 बार ही होते हैं। जब प्रारंभिक अवस्था में कुवारियों में पहली बार मासिक धर्म शुरू होता है, तो अधिकांशतः उनका मासिक धर्म नियमित होने में लगभग 2 साल तक का समय लग सकता है अथार्त प्रत्येक पीरियड्स के बीच का समय – समान होने का समय। यदि ऐसे में महिला को, 35 दिनों से अधिक समय तक पीरियड्स नहीं आ रहा हैं तो इस स्थिति में स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना आवशयक हो जाता है।
ऑलिगोमेनोरिया के लक्षण:
यदि मासिक धर्म का समय 28 से 35 दिनों से अधिक बढ़ रहा है।
साल में महिलाओं का मासिक धर्म 11 से 13 अवधि से घट कर 8 -9 बार ही रह गया हो।
पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग में परिवर्तन और यदि थक्के दिखाई देने लगे जो 2.5 सेंटीमीटर व्यास से भी अधिक हो।
प्रत्येक पीरियड्स के बीच का समय निश्चित न हो ।
पीरियड्स के दौरान सामान्य से अधिक या कम मात्रा में रक्त हानि होना।
प्रतेक पीरियड्स के दिनों की संख्या बहुत भिन्न होना, इत्यादि।
गर्भ धारण करने में कठिनाई होना।
यूटेरस में काफी तेज दर्द होना।
स्तन, पेट, हाथ-पैर और कमर में दर्द होना ।
अधिक थकान महसूस करना ।
यूटेरस में ब्लड क्लॉट्स का बनना ।
ऑलिगोमेनोरिया के कारण :
खूबसूरत दिखना चाहते हैं तो रोज़ करें योगासन
हार्मोनल परिवर्तन :
महिलाओं के जीवन में होने वाले अनेकों परिवर्तन उनके हार्मोनल संतुलन को प्रभावित करने के प्रमुख कारक माने जाते हैं जिसमें यौवन, रजोनिवृत्ति, गर्भावस्था, प्रसव, और स्तनपान प्रमुख रूप से शामिल हैं। यौवन के दौरान, शरीर में बहुत से बदलाव देखने को मिलते हैं जिसकी वजह से एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन का संतुलन काफी बिगड़ जाता है, जो की पीरियड्स को नियंत्रित करने वाले प्रमुख हॉर्मोन होते हैं अतः इस समय में अनियमित पीरियड्स होना आम होता हैं। वही दूसरी और रजोनिवृत्ति से पहले, भी अनियमित पीरियड्स होने की सम्भावना होती हैं, और ऐसे समय में रक्त की मात्रा भी अलग-अलग हो जाती है। वही दूसरी ओर गर्भावस्था के दौरान भी मासिक धर्म बंद हो जाता है, और अधिकाशतः देखा गया है की हार्मोनल परिवर्तन के कारण महिलाओं को स्तनपान कराते समय भी पीरियड्स नहीं होते हैं। गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से भी अनियमित रक्तस्राव की स्थति बन सकती है। जब कोई महिला पहली बार गर्भनिरोधक गोली का उपयोग करती है, तो उसे कम रक्तस्राव का अनुभव हो सकता है जो धीरे धीरे सामान्य अवधि की तुलना में कम होते चले जाते हैं और कुछ महीनों के बाद ख़त्म हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त अनियमित पीरियड्स के निम्न और भी कारण हो सकते हैं, जैसे:
छोटी सी लौंग के बड़े फायदे, वजन कम करने में करेगी आपकी मदद
आहार सम्बन्धी विकार, जैसे- एनोरेक्सिया नर्वोसा और बुलिमिया
डायबिटीज से ग्रसित होने पर
थायरॉइड की समस्या के कारण
गर्भाशय फाइब्रॉएड के कारण
अत्यधिक वजन कम होना
अत्यधिक वजन बढ़ना
भावनात्मक तनाव
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से ग्रषित होने पर
एथलीट्स महिलाओं में खेल के दौरान तीव्रता से व्यायाम या प्रशिक्षण के कारण
कठिन व्यायाम करने के कारण
प्राथमिक ओवेरियन इन्सफिसिएन्सी
पेल्विक में सूजन के कारण
हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया (रक्त में प्रोलैक्टिन का ऊंचा स्तर)
प्रोलैक्टिनोमास (पूर्वकाल पिट्यूटरी ग्रंथि पर एडेनोमा)
एंटीसाइकोटिक और एंटी एपिलेप्टिक ड्रग आदि से सम्बंधित दवाओं के प्रयोग के कारण।
अनियमित पीरियड्स से बचने के उपाय :
अपने आप को फिट रखने के लिए रोज थोड़ा व्याम या योग अवश्य करें।
बहुत लम्बे समय तक होर्मोनेस की गोलियां न खाएं।
यदि आप एथलीट्स हैं या अधिक व्यायम करती हैं तो अच्छी डाइट द्वारा अपनी कैलोरी को बनाये रखें।
अपने शुगर और थयरॉइड को नियंत्रित रखने का प्रयास करें।
अपने आपको बहुत अधिक तनाव से दूर रखने का प्रयास करें।
समय समय पर अपने चिकित्सक से सलाह लेते रहें।
ऑलिगोमेनोरिया निदान:
ओलिगोमेनोरिया का इलाज करने के लिए आपका आप से आपके मासिक धर्म के इतिहास और लक्षणों से संबन्धित अनेकों प्रश्न पूंछ सकता है। जिसके बाद वह निर्धारित करेगा की आपको शारीरिक परीक्षण, रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड इमेजिंग परीक्षण या MRI परीक्षण में से कौन से परीक्षण की आवश्यकता है।
शारीरिक परीक्षण :
इस परीक्षण में आप अपने पीरियड्स के होने के सही समय, रक्तस्राव की मात्रा,रक्त का रंग आदि से सम्बन्धित जानकारी अपने डॉक्टर को बताते हैं। डॉक्टर आपके आहार, यौन गतिविधि, गर्भनिरोधक का उपयोग, वर्तमान में ली जाने वाली दवाओं या शल्य चिकित्सा के इतिहास के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकता है,जिसक्रे बाद आपका डॉक्टर किसी नतीजे पर पहुँचता है।
प्रयोगशाला परीक्षण :
इस विधि में पैल्विक परीक्षण और पैप स्मीयर टेस्ट आपके चिकित्सक द्वारा करवाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त डॉक्टर थायरॉइड हार्मोन और डयबिटीज की जांच के लिए भी आपको रक्त परीक्षण के साथ-साथ गर्भावस्था परीक्षण भी बोल सकता है।
इमेजिंग परीक्षण :
इमेजिंग परीक्षण में हड्डी फ्रेक्चर की जाँच की जाती है, साथ ही एक्स-रे परीक्षण की भी आवश्कता होती है। इसके अतिरिक्त डॉक्टर पेल्विक क्षेत्र की
जांच के लिए अल्ट्रासाउंड और पिट्यूटरी ग्रंथि को प्रभावित करने वाले ट्यूमर का पता लगाने के लिए एमआरआई (MRI) करवाने का भी सुझाव दे सकते हैं।
ऑलिगोमेनोरिया के इलाज के लिए दवाएं :
आपका चिकित्सक टाइप 2 डायबिटीज के लिए इंसुलिन कम करने वाली ओरल ड्रग मेटफोर्मिन को लेने की सलाह दे सकता है, जो कि ओवुलेशन और नियमित पीरियड्स में बहुत ही मददगार होती है।
जन्म नियंत्रण गोलियाँ जिनमें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन की कम खुराक शामिल हो, ऑलिगोमेनोरिया के इलाज में मददगार होती है। साथ ही यह उपचार एण्ड्रोजन के उत्पादन को कम करने और कम होने वाले रक्तस्राव को नियंत्रित्र करने में सहायक होता है। कुछ स्थितियों में आपका चिकित्सक हर महीने 10 से 14 दिनों तक प्रोजेस्टेरोन का सेवन करने की सलाह दे सकता है।
यदि कोई महिला इस समस्या से काफी समय से गुजर रही है तो ऐसे में बिना देर किए डॉक्टर्स की सलाह लेना सही विकल्प होता है। इसके अतिरिक्त, कुछ घरेलू उपचार की मदद से भी इस समस्या को काफी हद तक सही किया जा सकता है।
घरेलू उपचार:
एक कप पानी में 1 चम्मच धनिया के बीज और दालचीनी पाउडर डाल कर तब तक गर्म करें जब तक की पानी आधा न रह जाएँ, फिर उसमें थोड़ी सी चीनी डाल कर गुनगुना होने के बाद पियें, ऐसा दिन में कम से कम दो बार करें।
एक कप पानी में थोड़ा सा अदरक डाल कर तब गर्म करें जब तक की वह आधा न रह जाए और थोड़ा गुनगुना होने पर उसमें थोड़ा सा शहद दाल कर पियें। इसका सेवन कम से कम दिन में दो से तीन बार करें। अदरक की तासीर गर्म होने के कारण इसके सेवन से मेटाबॉलिज्म तेज होता है। यह उपाय उन महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद है, जिनके पीरियड्स देर से होते हैं या कम दिन के लिए होते हैं।
कुछ महीनों तक रोज कच्चे पपीते के जूस पीने से या इसके सेवन से आपके पीरियड्स नियमित हो जाते हैं। पका हुआ पपीता खाने से गर्भाशय में मांसपेशियों के तंतुओं को सिकोड़ने में मदद मिलती है। पपीते के सेवन से शरीर में गर्मी पैदा हो जाती है, जिसके कारण एस्ट्रोजन हार्मोन उत्तेजित होता है, जिससे मासिक धर्म का प्रवाह नियंत्रित होने में मदद मिलती है। हालांकि, पीरियड्स के दौरान पपीता खाने से बचना चाहिए।
दो चम्मच जीरे को पानी में भिगोकर रात भर रख दें और अगली सुबह जीरे के पानी को पियें जो आपको नियमित पीरियड्स लाने में मददगार हो सकता है। इसके अतिरिक्त जीरे के पानी के सेवन से पाचन में सुधार होता है, वजन कम होता है।
प्राचीन काल से ही हल्दी को सबसे अच्छी औषधीय जड़ी बूटियों में से एक माना जाता है जो कि काफी गर्म होती है। यह मासिक धर्म को नियंत्रित करने और हार्मोन को संतुलित करने में मददगार होती है। दूध, शहद या गुड़ के साथ एक-चौथाई चम्मच हल्दी का नियमित सेवन करने से लाभ मिलता है।