मोहब्बत वो जज़्बा है, जिसकी वजह से सृष्टि है। सबसे खूबसूरत एहसास, जो जन्म का कारक है तो ज़िंदगी का पोषक भी है।मोहब्बत, जो मां का आंचल है तो पिता के मज़बूत कांधों की शान भी, दोस्ती का दुलार है तो रिश्तों की छांव भी। यह लम्हों की बात नहीं है, सदियों के क़िस्से हैं । एक पूरी दुनिया समायी हुई है मोहब्बत के एहसास में तो क्यों इसे लम्हों में जिया जाए। इसके लिए तो एक उम्र भी कम है। ये ऐसी खूबसूरत है मोहब्बत जो ज़िंदगी को हसीन बनाती है।
खुशहाल जीवन में चार चांद लगाती है लव मैरिज
लम्हों की बात नहीं है ये
नवजात की पहली मुस्कान और मां के आंचल से शुरू होती है मोहब्बत की दास्तां जिसमें पिता की उंगली का सहारा है तो रिश्तों के आंगन में पलती ज़िंदगी। दोस्तों के दुलार से सजती-संवरती मोहब्बत, हमसफ़र के एहसास से ज़िंदगी के सांझ की लाठी बनती है यानी एक पूरी उम्र है मोहब्बत।
तो इसे क्यों ना लम्हों में जिया जाए? बचपन, जवानी और बुढ़ापे के दौर से गुजरती हमारी ज़िंदगी जितनी बड़ी है, उतनी ही बड़ी है मोहब्बत भी। इसे “ब्रेकअप” और “पैचअप” जैसे पलों के लिए ज़ाया करना बेमानी है। मोहब्बत को उम्र के साथ बढ़ने दें, इसे लम्हों की ख़ता न बनाएं ।
मोहब्बत का दूसरा नाम विश्वास
कहते हैं, मोहब्बत का दूसरा नाम विश्वास है।विश्वास ही हमें अपनेपन का एहसास देता है, जिससे मोहब्बत का जन्म होता है। तो इस विश्वास को पल दो पल का क्यों बनाएं ? विश्वास की नींव मज़बूत करें तो मोहब्बत खुद परिपक्व होगी।किसी पार्क की ख़ाली बैंच या कॉफी शॉप की सीट, मीठी यादों के वो पल हैं जो हमें जज़्बातों से सराबोर करते हैं । मोहब्बत मात्र ये पल नहीं है, उसे तो पूरी उम्र भर का साथ चाहिए ।
तो दीजिए मोहब्बत को अपनी पूरी उम्र। आपकी उम्र के साथ उसे भी जवां और बूढ़ा होने दीजिए । कुछ पलों की याद उसे मत बनाइए। एक पूरी उम्र का एहसास बनाइए। हम सदियों के क़िस्से न सही पर एक ज़िंदगी की याद हैं, तो क्यों पलों का मेहमान अपनी मोहब्बत को बनाएं।अपनी परिपक्वता में अपनी मोहब्बत को परवान चढ़ने दें। यकीनन, ज़िंदगी की सांझ ख़ुशगवार रहेगी।
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मां का आंचल पिता के काँधे रिश्तों की छाँव दोस्ती की दुलार मिट्टी की ख़ुशबू
हमसफ़र की साँसों से सजी संवरी बड़ी खूबसूरत है मेरी मोहब्बत
इसे और संजने संवरने दो, ज़िंदगी की सांझ तक पहुंचने दो
मोहब्बत का एहसास स्वयं से परिचय है। यह वो जज़्बा है, जिसकी वजह से हम अपने ही दिल से रूबरू होते हैं। इनसान समय के साथ अपनी उम्र की परिपक्वता को जीता है, मोहब्बत भी उसकी उम्र के साथ परवान चढ़ती है। तो फिर इसे समय से क्यों बांधना? पलों का मोहताज न बनाएं । वक्त के आंचल में पलने दें अपनी मोहब्बत को, पलों के दायरे में न समेटें।
तभी तो गालिब ने क्या खुब कहा है…..
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले..