ऐसे तो मेले से कम नही ये दुनिया
भीड़ भाड़ है, शोर है, रौनक है
किसी के अंदर दुनिया बसी कोई मलंग मस्त कलंदर है
ये भीड़ के रूप में बहता, इंसानों का एक समंदर है
इस समंदर की गहराई में जाकर
हम कुछ मोती छांट कर लाये हैं
एक एक को दिल से परख कर देखा
तब कहीं जाके आज कह पाए हैं
दिन इकठ्ठा कर कर के गुल्लक में
हमने साल जमाये हैं
और खुद को देकर बदले में
कुछ दोस्त हमने कमाए हैं
दिशा सबकी अलग अलग
पर दशा में कोई अंतर नही
मिलने को दो पल मिल पाएं
ऐसा भी कोई मंतर नही
चार दिन अगर बात नही हुई
तो ये डर सताने लगता है
कि कहीं भूल न जाएं दोस्त मुझे
क्या ऐसा भी हो सकता है
इसलिए कभी किसी गाने से
कभी लड़ने के बहाने से
कुछ न कुछ बात बना लेता हूँ
और अपनी याद दिला देता हूँ
इतने बरस बीतने के बाद, इतने सावन सीचने के बाद
तब कहीं जाकर ये फूल खिले हैं
डांट ताने झेलने के बाद, कई खतरों से खेलने के बाद
तब तुम जैसे कुछ दोस्त मिले हैं
तो कहीं ये रास्तें रुक न जाएं
हम साथ चलते थक न जाएं
मैं आस पास ही दिख लेता हूं
या कभी कविता लिख देता हूँ
कैसे खो दूं इस यारी को
जब इतने सपने सजाये हैं
गुल्लक में करके जमा एक एक दिन
हमने कुछ दोस्त कमाए हैं।
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