शिशु के लिए छह माह तक मां के दूध से बेहतर कुछ भी नहीं माना जाता,परन्तु जब शिशु छह महीने का हो जाता है तब उसके बाद शिशु को विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन्स और कार्बोहाड्रेट्स की जरूरतें भी बढ़ जाती हैं, जो केवल माँ के दूध से पूरी नहीं होती। छह माह के बाद शिशु की ऊर्जा संबंधी जरूरतें 25 फीसदी तक अधिक बढ़ जाती हैं। अतः यही कारण है कि छह माह के बाद शिशु को थोड़ा ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए।
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बच्चों के भोजन से सम्बन्धित ध्यान रखने योग्य कुछ बातें:
बच्चों के भोजन को तैयार करते समस्य कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवशयक होता है जैसे कि :
1.जिन बच्चों अभी अभी ठोस पदार्थ खाना शुरू किया है ध्यान रखें उनकों 1 या 2 बड़े चम्मच से अधिक एक बार में न खिलाएं ।
2. दिन में दो से तीन बार ही बच्चों को एक से दो चम्मच खिलाएं।
3. शुरुआत में शिशु को पतले, शुद्ध खाद्य पदार्थों को खिलाना शुरू करें, इसके बाद, गांठदार, मसले हुए खाद्य पदार्थों को खिलाना शुरू करें , फिर कुछ दिन के बाद बारीक कटा हुआ भोजन देना शुरू करें।
4. शिशु को खाद्य पदार्थ खिलते समय ध्यान दें कि कहीं उसे किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी तो नहीं हो रही है, खासकर जब आप शिशु को अंडा, मूंगफली, गेहूं, सोया, और मछली जैसे खाद्य पदार्थ खिला रहे हो, क्योकि शुरुआत में यह बात नहीं पता होती है कि बच्चे को किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी है या नहीं।
5. कोशिश करें शिशु को घर का बना ही खाद्य पदार्थ अपने शिशु को दें।
6. शिशु जैसे ही ठोस आहार खाना शुरू करें , उसे सभी प्रकार के सही आहार देना प्रारंभ करें। क्योकि यदि आप शुरू से ही इस बात का ध्यान रखेंगें तो बच्चे बड़े होकर सभी प्रकार के आहार खाने में संकोच नहीं करेंगें। ऐसे में उनको सभी प्रकार का उचित पोषण प्राप्त होगा।
7. शिशु को को बचपन से ही जंक फूड या फ्राइड फूड खिलाने की आदत न डालें। उन्हें फल, सब्जियां व प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ से अवगत कराएं। क्योकि यदि बच्चा छोटे से ही हेल्दी भोजन करेगा तो बड़ा होकर जंक फूड खाने का आदि नहीं बनेगा।
8. नौ महीने की उम्र तक पहुंचते पहुंचते , शिशु को सभी खाद्य समूहों से सभी खाद्य पदार्थ खिलाने का प्रयास करना चाहिए।
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कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्व जो आपके शिशु के स्वास्थ्य के लिए जरुरी होते हैं :
जब आपका शिशु ब्रेस्टमिल्क या फार्मूला मिल्क के साथ कुछ दूसरे तरल और ठोस आहार का सेवन शुरू करता है तब ऐसे में आपको ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के पेट का आकार बहुत छोटा होता है, इसलिए उसे एक बार में ढेर सारा खिलाने की जगह थोड़े-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खिलाएं । 6 माह के बच्चे को मां के दूध के अलावा अच्छी तरह से मैश किया गया खाना दिन में दो से तीन बार खिलाना चाहिए। आयु बढ़ने के साथ उसके भोजन की मात्रा भी बढ़ती जाती है। इसके अलावा ध्यान रखें कि शिशु के भोजन में अन्य आवश्यक पोषक तत्व जैसे कि आयरन , प्रोटीन, कैल्शियम, डीएचए, फोलेट और कोलीन भी उचित मात्रा में उपस्थित हो।
क्यों महत्वपूर्ण हैं ये पोषक तत्व :
1.आयरन :
आयरन की कमी होने पर शिशु को एनीमिया होने का खतरा हो सकता है साथ ही इसकी कमी होने पर शिशु के विकास पर भी प्रभाव पड़ सकता है। आयरन लाल रक्त कोशिकाओं का एक महत्वपूर्ण घटक है, यह ओटमील, अनाज, शुद्ध बीन्स और पालक जैसे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।
2. कैल्शियम :
शिशु के भोजन में उचित कैल्शियम उनके हड्डियों और दांतों के स्वास्थ्य, रक्त के थक्के, न्यूरॉन संदेश, हार्मोन, मांसपेशियों के संकुचन, स्वस्थ हृदय और अन्य प्रक्रियाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। स्तन दूध, शिशु फार्मूला, दही शामिल, शुद्ध पत्तेदार साग जैसे केल, पालक और बीन्स में कैल्शियम उचित मात्रा में पाया जाता है।
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3. डीएचए:
डीएचए शिशु के मस्तिष्क विकास और स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व होता है। डीएचए एक असंतृप्त ओमेगा 3 वसा है जो मछली के तेल या मछली, स्तन के दूध (यदि माँ अपने आहार में डीएचए युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करती है), शिशु फार्मूला और अन्य समृद्ध खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।
4. प्रोटीन :
शिशु के लिए प्रोटीन बेहद जरूरी होता है. यह पोषक तत्व 20 सामान्य एमीनो एसिड से मिलकर बना होता है जो शिशु के शरीर को मजबूती प्रदान करता है। शिशु को सबसे अधिक मात्रा में यह प्रोटीन मां के दूध से प्राप्त होता है अतः बच्चे के जन्म के पहले चार से छह महीनों तक माँ को शिशु को स्तनपान अवश्य करना चाहिए। प्रोटीन शिशु के छोटे से शरीर को विकसित करने तथा शरीर की कोशिकाओं की मरम्मत करने में मदद प्रदान करता है, साथ ही रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और शिशु के मेटाबोलिज्म को भी सक्रीय बना कर शिशु के पाचन को सुचारु बनाता है।
5. फोलेट:
फोलेट शिशुओं में मस्तिष्क के विकास और रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने का काम करता है।
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छह से सात महीने के शिशु के लिए उचित आहार :
1.फलों की प्यूरी:
फल शिशु का ठोस भोजन शुरू करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता हैं। अतः कुछ फल जैसे केला, आम, आड़ू, पपीता अच्छे से मैश करके शिशु को दे सकते हैं। केले को शिशु के लिए परिपूर्ण भोजन कहा गया है,क्योकि केला पोटेशियम और फाइबर से समृद्ध होता हैं।हालांकि केला बच्चों के लिए सबसे अच्छे खाद्य पदार्थों में से एक माना जाता है, लेकिन बहुत अधिक केला भी शिशु में कब्ज की समस्या पैदा कर सकता है।फलों की प्यूरी जैसे उबाला हुआ या भाप में पकाया हुआ सेब, नाशपती, आम भी बेहतर विकल्प होते हैं , जो विटामिन और फाइबर का अच्छा स्रोत माने जाते है। दो या इससे ज्यादा फल या सब्जियों को मिलाकर बनी प्यूरी तैयार करके अपने शिशु को दें, ताकि शिशु को नया स्वाद और अतिरिक्त पोषण मिल सके। भाप में पकाए हुए फल और सब्जियों की प्यूरी शिशु के भोजन को और अधिक पौष्टिक बनाने का काम करती है।
2. ओट्स दलिया:
दलिया सेहतमंद आहार माना जाता है, जो टूटे हुए अनाज से बनता है। दलिया बनाने में अनेकों प्रकार के अनाज जैसे गेहूं, बाजरा, चावल, जई व मकई का प्रयोग किया जाता है । दलिया में कई पौष्टिक तत्व जैसे विटामिन, मिनरल व आयरन उपस्थित होते हैं। अगर आप चाहें तो अपने शिशु के दलीय में थोड़ा सा दूध, दाल, सब्जी की ग्रेवी या पानी भी मिला सकतें हैं, साथ ही मसले हुए फल (केला, चीकू, पपीता, आम आदि) भी मिलाकर इसे और अधिक स्वादिष्ट और पोषक बनाया जा सकता है
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3. चावल का पानी तथा चावल की खीर :
चावल शिशुओं के लिए कार्बोहाइड्रेट और विटामिन का एक अच्छा स्रोत माना जाता है। टूटे हुए चावल, स्तन के दूध या फार्मूला मिल्क के साथ पका कर दिए जा सकते हैं , साथ ही चावल का माड़ या चावल का पानी भी बहुत पौष्टिक होता है। चावल की खीर स्वदिष्ट होने के कारण
शिशु बहुत पसंद से खा लेते हैं। बच्चे का पाचन तंत्र अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है , ऐसे में खीर आसानी से पच जाती है।
4. सेव और सूजी की खीर :
सेव और सूजी की खीर खासकर फैट्स और कार्बोहाइड्रेट से युक्त होती जो आपके शिशु की सेहत के लिए बहुत ही अच्छी होती है। इसको खान के बाद आपके शिशु का पेट काफी देर तक भरा रहेगा साथ ही यह काफी सुपाच्य होता है। जैसा की जानते हैं कि सेव काफी आसानी से पच जाता है और इसमें फाइबर पाए जाने के कारण यह कब्ज को दूर भगाता है। सूजी में प्रोटीन की उचित मात्र होती है जो बढते बच्चों के लिए बहुत जरुरी होती है। इसके साथ ही यह मैग्नीशियम, विटामिन B1, B2, B3, E, फोलिक एसिड, कैल्शियम, फॉस्फोरस, जिंक, कॉपर, आयरन, फाइबर और कई प्रकार के मिनरल्ससे भी भरपूर्ण होती है।
5. पके हुए शकरकंद की प्यूरी:
शकरकंद विटामिन, एंटीऑक्सिडेंट और फाइबर से भरे होते हैं, इसलिए आप अपने शिशु को पानी या दूध के साथ शकरकंद की प्यूरी बना कर खिला सकती हैं। यह प्यूरी स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है।
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6. मुंग दाल :
मुंग की दाल बहुत ही हल्का आहार माना जाता है क्योकि यह आसानी से पच जाता है। इसी वजह से तबियत ख़राब होने पर मुंग की दाल को खाने की सलाह दी जाती है। छह महीने के बच्चे का पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है जिसकी वजह से मुंग की दाल शिशु के लिए अच्छा आहार माना जाता है। मुंग की दाल में बहुत सारे पौष्टिक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसके साथ ही मुंग के दाल के सेवन से शिशु के त्वचा में निखार आता है।
7. हरे मटर की प्यूरी:
मटर के दाने विटामिन A और C, आयरन, प्रोटीन, तथा कैल्शियम से भरभूर होते है। मटर में मौजूद विटामिन A और C बच्चे को स्वस्थ रखने में मदद करता है, आयरन बच्चे में नया खून बनाने में योगदान देता है, प्रोटीन से बच्चे की मासपेशियां बनती है और कैल्शियम बच्चे की हाड़ियोँ को मजबूती प्रदान करता है।ऐसे में आपके शिशु को मटर की प्यूरी का सेवन कराना बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है।
8. अंडा :
शिशु को अंडा खिलाना बहुत ही लाभकारी होता है क्योंकि उसमे प्रचुर मात्र में फैट और कोलेस्ट्रॉल होता है। क्योकि छोटे शिशुओं को बड़ों की तुलना में ज्यादा फैट और कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है क्योकि शिशु का शरीर विकास की अवस्था में होता है ऐसे में अंडे में मौजूद फैट और कोलेस्ट्रॉल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंडे में दो हिस्से होते हैं पहला अंडे का पीला हिस्सा और दूसरा अंडे का सफ़ेद हिस्सा। अंडे के पीले हिस्से में प्रचुर मात्रा में फैट और कोलेस्ट्रॉल पाया जाता है। अतः अपने शिशु को उबले हुए अंडे के पिले हिस्से को खिलाएं जिससे आपके शिशु के विकास के लिए वो सारे पोषक तत्व मिलेगें हैं जो उसके संतुलित विकास के लिए जरुरी है। वही दूसरी ओर अंडे का सफ़ेद हिस्सा मुख्यता प्रोटीन से भरा होता है। इसमें चार ऐसे प्रोटीन है, जो इंसानों में एलर्जी पैदा करने की क्षमता रखते हैं। अतः शिशु को अंडे के सफ़ेद भाग को नहीं खिलाना चाहिए वही पीले भाग में एलर्जी पैदा करने वाले तत्व न के बराबर होते हैं।
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नोट : शुरुआत में शिशु को अंडा खिलाते समय ध्यान दें कि अंडा खाने के बाद उसको किसी प्रकार की एलर्जी, जैसे की शरीर पर कोई चक्क्ते आदि तो नहीं पड़ रहे हैं यदि ऐसा महसूस हो रहा है तो शिशु को अंडा न खिलाएं।